मेरे सिवा ये काम कोई और भी करे दुश्मन का एहतिराम कोई और भी करे मैं ने तो राह-ए-इश्क़ में ख़ुद को मिटा दिया अब ज़िंदगी तमाम कोई और भी करे मैं ने तो ख़्वाब में भी ये सोचा नहीं कभी दिल में तेरे क़ियाम कोई और भी करे क्या आप चाहते हैं सर-ए-बज़्म ऐ 'मजाज़' रौशन वतन का नाम कोई और भी करे