मेरी आवारा-मिज़ाजी को मुकम्मल कर दे ऐ ख़ुदा दश्त-ए-तमन्ना मिरा मक़्तल कर दे टूटते बनते अनासिर में हो तहरीक-ए-कमाल या मुझे ख़ाक बना या मुझे जल-थल कर दे न सही लाला-ओ-गुल नाला-ए-बुलबुल न सही मुझ को गुलशन नहीं करता है तो जंगल कर दे दिल को झुलसाता है इक याद का सूरज कब से या-ख़ुदा अब तो किसी ख़्वाब को बादल कर दे अब के बरसात लगी आँखों से अंदर की तरफ़ ख़ौफ़ ये है कि मिरा जिस्म न दलदल कर दे वो मुझे होश में रखता है तड़पने के लिए बारहा मैं ने कहा है मुझे पागल कर दे