मेरी दीवानगी नहीं जाती रो रहा हूँ हँसी नहीं जाती तेरे जल्वों से आश्कारा हूँ चाँद की चाँदनी नहीं जाती तर्क-ए-मय ही समझ ले ऐ नासेह इतनी पी है कि पी नहीं जाती जब से देखा है उन को बे-पर्दा नख़वत-ए-आगही नहीं जाती शोख़ी-ए-हुस्न-ए-बे-अमाँ की क़सम हुस्न की सादगी नहीं जाती उन की दरिया-दिली को क्या कहिए मेरी तिश्ना-लबी नहीं जाती