मेरी गर्दन पर न जाने किस का चेहरा रह गया आइने को मैं मुझे आईना तकता रह गया सारा दिन बिखरे हुए ख़्वाबों को यकजा कीजिए ज़िंदगी के नाम पर बस इक तमाशा रह गया भर रही है सिसकियाँ किस के लिए नहर-ए-फ़ुरात ऐ ज़मीन-ए-कर्बला ये कौन प्यासा रह गया अपने घर को फूँक दें और रौशनी पैदा करें अब हमारे सामने बस एक रस्ता रह गया एक दिन फ़ुर्सत में बैठूँगी लगाऊंगी हिसाब मैं ने क्या कुछ खो दिया और पास में क्या रह गया उस ने तो इक बार 'रख़्शाँ' मुझ को देखा तक नहीं मेज़ के कोने में रक्खा मेरा तोहफ़ा रह गया