मेरी हर बात पे मुँह फेर के हँसता क्या है मैं भी इंसान हूँ तू ने मुझे समझा क्या है एक मेरा ही है घर शीशे का सो डरता हूँ शहर ही शीशे का हो जाए तो ख़तरा क्या है ज़ोर-ए-तंबीह से मत छीनिए बच्चों की चहक खिलखिला कर जो न हँसता हो वो बच्चा क्या है बा'द में फ़ैसला रहबर के हुनर का होगा पहले ये बात तो वाज़ेह हो कि होना क्या है ऊब कर शिद्दत-ए-इसरार से हामी भर दी देखना है मिरे इक़रार से होता क्या है गर मिरी तरह तुझे भी है यक़ीन-ए-कामिल मरना इक बार है हर आन पे मरता क्या है आपसी बात से हल निकले सभी चाहते हैं 'नज़्र' बतलाए कोई सुल्ह का ख़ाका क्या है