लताफ़त इस को कहते हैं कि शामत इस को कहते हैं छिले मख़मल पे भी पाँव नज़ाकत इस को कहते हैं न सुध अपनी रहे बाक़ी मोहब्बत इस को कहते हैं सुने ता'ने भी ख़ंदा-लब शराफ़त इस को कहते हैं पयम्बर मुक़तदी जिन के इमामत इस को कहते हैं जब आँखें रहते अंधा हो जिहालत इस को कहते हैं बदल दे रात को दिन में वकालत इस को कहते हैं कभी तन्हा नहीं आती मुसीबत इस को कहते हैं जो लम्हा हाथ आ जाए ग़नीमत इस को कहते हैं न जाने किस पे आ जाए तबी'अत इस को कहते हैं करें जब तज्रबा साझा क़राबत इस को कहते हैं अज़ाँ मक़्तल से जब गूँजे 'इबादत इस को कहते हैं बयाँ जो 'नज़्र' करते हैं हक़ीक़त उस को कहते हैं