मिरी हर गुफ़्तुगू तौहीद की है सो मैं ने इश्क़ की ताईद की है कभी गुज़रे हो क्या तुम कर्बला से कभी शब्बीर की तक़लीद की है यहाँ जो रौशनी है चार जानिब सिनाँ पर बोलते ख़ुर्शीद की है लहू का रंग डाला है ग़ज़ल में दरूँ के सोज़ की तज्दीद की है हसद से ज़ंग लगता है दिलों को यही इक दोस्त ने ताकीद की है जिसे मुझ से मोहब्बत ही नहीं थी उसी ने ख़ैर से तरदीद की है ख़िज़ाँ का दर्द सीने से लगा कर विसाल-ए-यार की उम्मीद की है 'सुहैब' ऐसी ख़बर ने आ लिया है कि मैं ने नज़्म में तजरीद की है