साँस ज़ंजीर की मानिंद सज़ा की गई है या'नी हिजरत मिरी क़िस्मत में रवा की गई है मैं किसी ज़ुल्म पे ख़ामोश नहीं रह सकता ये बग़ावत मुझे विर्से में अता की गई है ऐन-मुमकिन है मिरे दोस्त मैं बख़्शा जाऊँ आज मेरे लिए मस्जिद में दुआ की गई है बाद-अज़ कर्ब-ओ-बला लफ़्ज़ के मा'नी बदले इस्म-ए-अब्बास से तफ़्सीर-ए-वफ़ा की गई है इस लिए मा'नी उजाले की अलामत है 'सुहैब' रौशनी लफ़्ज़ की आँखों में फ़ना की गई है