मिरी इल्तिजा से ख़फ़ा न हो कि वो जोश-ए-दिल था गिला न था कभी रंज मैं ने सहा न था कभी दिल किसी को दिया न था मिरे हाथों मुझ को अलम मिले ये मैं क्यों कहूँ कि ख़ुदा न था मिरा का'बा था हरम-ए-बुताँ मिरा क़िबला क़िबला-नुमा न था तिरी एहतियात-ए-निगाह से तिरे इल्तिफ़ात-ए-निगाह तक मिरा हाल लाख बुरा सही मगर इस क़दर भी बुरा न था ब-हज़ार इश्वा-ए-जाँ-सिताँ वो फिर अपना जल्वा दिखा गए अभी आग दिल की दबी न थी अभी ज़ख़्म दिल का भरा न था मिरे दर्द-ए-दिल का वो माजरा मिरे रंग-ए-रुख़ से अयाँ हुआ जो किसी से मैं ने कहा न था जो किसी ने मुझ से सुना न था ये मैं क्यों कहूँ मिरा दिल गया कि फ़ुग़ाँ से अर्श तो हिल गया मुझे इंतिज़ार में मिल गया तिरे वस्ल में जो मज़ा न था वो नियाज़-ए-इश्क़ की साज़िशें वो ग़ुरूर-ए-हुस्न की नाज़िशें मुझे ए'तिमाद-ए-सितम न था उन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा न था ये बता कि 'बासित'-ए-ख़स्ता को तिरी बज़्म-ए-नाज़ से क्या मिला अभी दिल-ब-दस्त गया था वो अभी हाथ दिल से जुदा न था