मेरी ख़्वाहिश का बिस्तर सुलगता रहा हिज्र में वक़्त अक्सर सुलगता रहा फूल मक़्तूल के हाथ में देख कर दस्त-ए-क़ातिल पे ख़ंजर सुलगता रहा मेहरबाँ थे तमाशाइयों की तरह मेरे ख़्वाबों का दफ़्तर सुलगता रहा तेज़ किरनों की ज़द में था हर एक शे'र यूँ तख़य्युल का ख़ावर सुलगता रहा मै-कदा था बग़ैर उन के वीरान सा याद में उन की साग़र सुलगता रहा दूर होती गई उस से 'ऐनी' हया जिस्म से उस के ज़ेवर सुलगता रहा