मेरी महफ़िल था मिरी ख़ल्वत-ए-जाँ था क्या था वो अजब शख़्स था इक राज़-ए-निहाँ था क्या था बाल खोले हुए फिरती थीं हसीनाएँ कुछ वस्ल था या कि जुदाई का समाँ था क्या था हाए उस शोख़ के खुल पाए न असरार कभी जाने वो शख़्स यक़ीं था कि गुमाँ था क्या था तुम जिसे मरकज़ी किरदार समझ बैठे हो वो फ़साने में अगर था तो कहाँ था क्या था क्यूँ 'वसी'-शाह पे परी-ज़ादियाँ जाँ देती हैं माह-ए-कनआ'न था शाइ'र था जवाँ था क्या था