मेरी मंज़िल का रास्ता मुझ को एक पंछी दिखा रहा मुझ को उस नगर से किया जुदा मुझ को कोई अपना नहीं रहा मुझ को तेरे पहलू से ख़ूब भटकाया मेरी क़िस्मत ने जा-ब-जा मुझ को हादिसा ये भी कुछ जुदा सा है बुझता दीपक जला रहा मुझ को एक रिश्ता तबाह कर डाला शक की दीमक ने खा लिया मुझ को अब भँवर में खुला ये आकर के ले के डूबेगा ना-ख़ुदा मुझ को बाद जाने के आप के मिलता हू-ब-हू कोई आप सा मुझ को हाए पहचानता नहीं 'सोहिल' अब तो घर का भी आइना मुझ को