मेरी नज़रों से भी तू दूर कहाँ होता है By Ghazal << हिसार-ए-ग़म से निकल अपनी ... इश्क़ ऐसा अजीब दरिया है >> मेरी नज़रों से भी तू दूर कहाँ होता है अपने साए पे भी अब तेरा गुमाँ होता है तेरे जज़्बात के बहते हुए दरिया की क़सम लम्हा लम्हा तिरी चाहत से जवाँ होता है नींद आँखों से बहुत दूर चली जाती है जब तसव्वुर में तिरा ज़िक्र बयाँ होता है Share on: