मिरी नज़र से गुज़रने वाले पयाम कब तक सलाम कब तक इनायत-ए-दिलबरी कहाँ तक नवाज़िश-ए-ख़ास-ओ-आम कब तक ये फ़ुर्सत-ए-एहतिमाम कब तक ये ज़हमत-ए-गाम-गाम कब तक ये दिल की दुनिया-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक रहेगी मश्क़-ए-ख़िराम कब तक पयाम आते रहेंगे आख़िर असीर-ए-उलफ़त के नाम कब तक ये इज़्तिराब-ए-ग़म-ए-मोहब्बत रहेगा यूँ तिश्ना-काम कब तक ये महका महका सा कैफ़-सामाँ शबाब तेरा शराब मेरी भरी नज़र से पिलाने वाले ये ज़हमत-ए-जाम-जाम कब तक न मेरी मंज़िल न मेरा जादा मज़ाक़-ए-फ़ितरत ये क्या तमाशा ख़िरद की ये गुम-रही कहाँ तक जुनूँ का ये फ़ैज़-ए-आम कब तक ये तेरा रौशन सा एक आलम ये मेरी तारीकी-ए-शब-ए-ग़म तिरे ही जलवों से पूछता हूँ ये सुब्ह कब तक ये शाम कब तक मिरी तमन्ना भी और कब तक रहीन-ए-ज़ौक़-ए-तलब रहेगी मिरी मोहब्बत मिरा ही जीना करेगी मुझ पर हराम कब तक किसी का ले कर भी नाम दुनिया कभी तो आख़िर करेगी चर्चे रहेगा मेरा ही नाम 'मुश्किल' ज़बाँ-ज़द-ए-ख़ास-ओ-आम कब तक तक