वाक़िफ़ हैं बे-ख़ुदी से न अपनी ख़ुदी से हम शायद कि बे-ख़बर हैं अभी ज़िंदगी से हम बैठे हैं तेरी बज़्म में किस सादगी से हम जैसे कि आश्ना ही नहीं हैं किसी से हम जो आज तक हुआ न कभी ख़िज़्र को नसीब वो काम ले रहे हैं अभी गुमरही से हम इक तेरे ग़म से प्यार हमें क्या हुआ ऐ दोस्त दुनिया का ग़म ख़रीद रहे हैं ख़ुशी से हम 'मुश्किल' अगरचे अज़्म करें पुख़्तगी के साथ नज़्म-ए-चमन बदल के रहें आज ही से हम