मिरी नज़रों में दुनिया थी मगर अन्दर थी तन्हाई सर-ए-मंज़र था हंगामा पस-ए-मंज़र थी तन्हाई पढ़ी थी मय-कदों के शोर की हर दास्ताँ हम ने मगर उस शोर में पैवस्त फ़ित्ना-गर थी तन्हाई हवाएँ ख़ुश-गुमानी की बुलाने आईं थीं लेकिन उदासी पाँव जकड़े थी शिकस्ता-पर थी तन्हाई सजी थी ख़ाना-ए-दिल की हर-इक दीवार यादों से बहुत पुर-सोज़ से लहजे में नग़्मा-गर थी तन्हाई ख़िज़ाँ-आलूद शाख़ों पर परिंदे भी नहीं आए इसी बे-साएबानी में बरहना सर थी तन्हाई मिरे अतराफ़ सब चेहरों पे ख़ुशियाँ थीं त'अल्लुक़ था मगर आँखों की तह में वसवसों से तर थी तन्हाई जुनूँ था वहशतें थीं आबला-पाई थी हसरत थी 'हिना' दश्त-ए-मोहब्बत में बहुत मुज़्तर थी तन्हाई