मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया उम्र मेरी थी मगर उस को बसर उस ने किया मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बा'द पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर-तर उस ने किया राहबर मेरा बना गुमराह करने के लिए मुझ को सीधे रास्ते से दर-ब-दर उस ने किया शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ फिर मुझे इस शहर में ना-मो'तबर उस ने किया शहर को बरबाद कर के रख दिया उस ने 'मुनीर' शहर पर ये ज़ुल्म मेरे नाम पर उस ने किया