मेरी सूरत से वो अंजान भी हो सकता है मेरे मिलने से वो हैरान भी हो सकता है तुम तो हर बात में ढूँडो हो मुनाफ़ा' लेकिन इस मोहब्बत में तो नुक़सान भी हो सकता है मुस्कुराते हुए फूलों की नज़ाकत पे न जा कोई अंदर से परेशान भी हो सकता है बेवफ़ा जिस को सर-ए-बज़्म कहे जाते हो वो तिरे इश्क़ में क़ुर्बान भी हो सकता है आज जिस शख़्स के शिकवे हैं तिरे होंटों पर कल यही शख़्स तिरी जान भी हो सकता है ये ज़रूरी तो नहीं इश्क़ हो दिल्ली में फ़क़त शहर-ए-महबूब तो मुल्तान भी हो सकता है देखो उलझो नहीं दरवेश से हरगिज़ लोगो वर्ना फिर शहर ये वीरान भी हो सकता है अब जो पहने हुए गुज़रा है फ़क़ीरों सा लिबास ये गए वक़्त का सुल्तान भी हो सकता है तुम जिसे दार पे ले आए हो काफ़िर कह कर ये तो बेचारा मुसलमान भी हो सकता है है जो ग़ुंचों से भरा आप का गुलशन 'फ़ैसल' इश्क़ में ये तो बयाबान भी हो सकता है