मेरी तक़दीर मुआफ़िक़ न थी तदबीर के साथ खुल गई आँख निगहबाँ की भी ज़ंजीर के साथ खुल गया मुसहफ़-ए-रुख़्सार-ए-बुतान-ए-मग़रिब हो गए शैख़ भी हाज़िर नई तफ़्सीर के साथ ना-तवानी मिरी देखी तो मुसव्विर ने कहा डर है तुम भी कहीं खिंच आओ न तस्वीर के साथ हो गया ताइर-ए-दिल सैद-ए-निगाह-ए-बे-क़स्द सई-ए-बाज़ू की यहाँ शर्त न थी तीर के साथ लहज़ा लहज़ा है तरक़्क़ी पे तिरा हुस्न-ओ-जमाल जिस को शक हो तुझे देखे तिरी तस्वीर के साथ बा'द सय्यद के मैं कॉलेज का करूँ क्या दर्शन अब मोहब्बत न रही इस बुत-ए-बे-पीर के साथ मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर' 'नासिख़' ओ 'ज़ौक़' भी जब चल न सके 'मीर' के साथ