मेरी तक़दीर रह गई सोई इल्तिजा कर के बात भी खोई देख कर गुल्सिताँ की बर्बादी ग़म से शबनम भी रात भर रोई सर्द-मेहरी के इस ज़माने में कौन करता है किस की दिल-जूई अल-अमाँ दोपहर की ये गर्मी धूप भी जा के छाँव में सोई बो के काँटे गुलाब कौन चुने आगे आती है अपनी ही बोई उजले उजले वो आज लगते हैं माश की दाल जिस तरह धोई एक से एक आज ऐंठा है ख़ुश नहीं है किसी से अब कोई सोज़-ए-परवाज़ देख कर 'अरशद' शम्अ' जल जल के ता सहर रोई