मिली है दर्द की ने'मत निशात-ए-जाँ के लिए न आह-ओ-नाला की ख़ातिर न कुछ फ़ुग़ाँ के लिए न कुछ ज़मीं के लिए है न कुछ ज़माँ के लिए न कुछ मकीं के लिए है न कुछ मकाँ के लिए न इल्म-ओ-फ़ज़्ल की बातें न इल्म-ओ-फ़ज़्ल में दख़्ल न कुछ अदब के लिए है न कुछ बयाँ के लिए हज़ार तरह के सामाँ हयात-ए-फ़ानी में किए हैं जम्अ' किसी ने तो फिर कहाँ के लिए शुआ'-ए-बर्क़-ओ-शरर चुन के हम ने रक्खी है निहाल-ए-ख़ुश्क प तामीर-ए-आशियाँ के लिए तुम्हें न है कोई निस्बत मिरी कहानी से तुम्हारा नाम तो है ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए ज़बाँ पे आ ही गया जब कि तेरा नाम-ए-जमील दहान-ए-नुत्क़ ने बोसे मिरी ज़बाँ के लिए नहीं मजाल-ए-सुख़न उस के रू-ब-रू 'अरशद' कहाँ से लाऊँ मैं ताब-ओ-तवाँ ज़बाँ के लिए