मेरी तहरीरों का महवर एक बे-सर फ़ाख़्ता मेरा नारा ख़ामुशी मेरा पयम्बर फ़ाख़्ता एक आँगन क़हक़हों और सिसकियों से बे-ख़बर छत पे इक परचम फटा सा और दर पर फ़ाख़्ता तेरे रस्तों की रुकावट शाख़ इक ज़ैतून की तेरे ऐवानों के अंदर जागता डर फ़ाख़्ता शाम प्यारी शाम उस पर भी कोई दर खोल दे शाख़ पर बैठी हुई है एक बेघर फ़ाख़्ता एक जानिब उजले पानी का बुलावा और हुआ दूसरी सम्त इक अकेली और बे-पर फ़ाख़्ता