मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी उस सरापा अजब से आँख लगी इश्क़ में ख़्वाब का ख़याल किसे न लगी आँख जब से आँख लगी ख़्वाब में भी न देखा हम ने लुत्फ़ किस सरापा ग़ज़ब से आँख लगी जितने ख़ुश-चश्म हैं ज़माने में रहती है मेरी सब से आँख लगी रात हमसायों की न सुब्ह तलक मेरी अफ़्ग़ान-ए-शब से आँख लगी यार आता नज़र नहीं आता है इधर मेरी कब से आँख लगी रहती है उस निगाह-ए-काफ़िर की रंजिश-ए-बे-सबब से आँख लगी मुझ को मत देख है बला 'हसरत' यार-ए-आशिक़-तलब से आँख लगी