मिरी वफ़ाओं का मुझे वो यूँ हिसाब दे गया मिरे समुंदरों को छीन कर सराब दे गया तुझे ख़बर है तेरा बाप कितना बेवक़ूफ़ था कि झुर्रियाँ ख़रीद कर तुझे शबाब दे गया अना-परस्त मैं भी था मगर ये इश्क़ ही तो था कि तुझ को ख़ार के बजाए मैं गुलाब दे गया विसाल और कमाल का ये सिलसिला रुका हुआ वो नार-ए-इंतिज़ार का मुझे अज़ाब दे गया किताब-ए-ज़ीस्त के सुनहरे बाब को मिटा दिया मुझे तवील हिजरतों का इक निसाब दे गया मैं इश्क़ की ज़बान में कहूँ तो क्या कहूँ उसे मिरा सुकून छीन कर जो इज़्तिराब दे गया तिरा इलाज 'काशिफ़' अब सिवाए सब्र कुछ नहीं मिरे पते पे अंदलीब ये जवाब दे गया