मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का जब अपने तौर यही थे तो क्या गिला उस का वो अपने ज़ोम में था बे-ख़बर रहा मुझ से उसे गुमाँ भी नहीं मैं नहीं रहा उस का वो बर्क़-रौ था मगर वो गया कहाँ जाने अब इंतिज़ार करेंगे शिकस्ता-पा उस का चलो ये सैल-ए-बला-ख़ेज़ ही बने अपना सफ़ीना उस का ख़ुदा उस का नाख़ुदा उस का ये अहल-ए-दर्द भी किस की दुहाई देते हैं वो चुप भी हो तो ज़माना है हम-नवा उस का हमीं ने तर्क-ए-तअल्लुक़ में पहल की कि 'फ़राज़' वो चाहता था मगर हौसला न था उस का