मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे वो हाथ आ के भी अक्सर कहाँ मिला है मुझे मैं सिर्फ़ देख ही सकता हूँ चश्म-ए-साहिल से कि वो बदन अजब आब-ए-रवाँ मिला है मुझे फ़रोख़्त कर के ख़सारे में आ गया बाज़ार तो सोच लो कि वो कितना गराँ मिला है मुझे अचानक आज मिरा ज़ख़्म बात करने लगा बहुत दिनों में कोई हम-ज़बाँ मिला है मुझे हमेशा देर से पहुँचा मैं उस की महफ़िल में बजाए आग हमेशा धुआँ मिला है मुझे अजब कशाकश-ए-ईमान-ओ-कुफ्र रहती है वो बुत हमेशा ब-वक़्त-ए-अज़ाँ मिला है मुझे उलट के रख दिया 'एहसास' ने हिसाब-ए-उम्र वो रोज़ कल से ज़ियादा जवाँ मिला है मुझे