ये न हो वो भूलने वाला भुला देना पड़े और फिर ये राज़ उस को भी बता देना पड़े ऐ दिल-ए-हंगामा-ख़ू तकरार इतनी भी न कर तंग आ कर तुझ को महफ़िल से उठा देना पड़े ठान रक्खी है कि दिल की बात कहनी है ज़रूर उस की ख़ातिर ख़्वाह महशर ही उठा देना पड़े आँख वालों के करम से आज वो रात आ गई जब किसी अंधे के हाथों में दिया देना पड़े देखना है आग में कैसा नज़र आता है शहर ख़्वाह पूरा शहर ही हम को जला देना पड़े