मिला जुनूँ को जो पैग़ाम-ए-ख़ार-पैमाई दहान-ए-दश्त से आवाज़-ए-अल-अमाँ आई अदम से जोशिश-ए-वहशत में ता-वजूद आई कहाँ से खींच के मुझ को क़ज़ा कहाँ लाई नक़ब लगा के मिरी आह उन की पलकों में निगाह-ए-नाज़ से कुछ बिजलियाँ चुरा लाई यहाँ तो गोशा-ए-दिल ही में जाने क्या देखा कलीम तूर पे करते हैं ख़ार-पैमाई 'जमाल'-ए-ज़ार की जानिब निगाह क्यों उट्ठे नज़र को उन की है अंदेशा-ए-मसीहाई