मिला क़तरा तो करते क्यों शिकायत तुम मुक़द्दर की गिला क़िस्मत का है फिर क्यों न कोशिश की समुंदर की बड़े अख़्लाक़ वाली उन की औलाद-ए-नरीना है शरीअ'त के तमस्ख़ुर में ज़बाँ चलती है दुख़्तर की अगर है ख़ाकसारी तो बुलंदी पर क़दम होंगे जगह फ़िरऔन हासिल कर नहीं सकता सिकंदर की ख़ुदा पर हो यक़ीं कामिल अगर इंसाँ न हो काहिल तलातुम-ख़ेज़ मौजें भी मदद करतीं समुंदर की क़नाअत सब्र 'परवाना' ये हैं अल्फ़ाज़ अच्छे पर नसीहत पर अमल ख़ुद कर न खा ठोकर तू दर दर की