मिला के होंटों के ज़हराब आबगीनों में ये किस ने आग सी भर दी हमारे सीनों में अब इस के बा'द कोई चेहरा देखना ही नहीं हम अपनी आँखें भी छोड़ आए मह-जबीनों में किसी की आँखों में झाँकूँ तो अपना अक्स मिले अब ऐसे लोग कहाँ हैं तमाश-बीनों में उन्हीं के तलवों से काँटे लहू नसीब हुए जो चाँद बोते रहे उम्र भर ज़मीनों में हलाल रिज़्क़ कभी राएगाँ नहीं जाता कि च्यूंटियाँ कभी लगतीं नहीं पसीनों में तबस्सुमों से ही काम उस का चल गया वर्ना छुपा के लाया था ख़ंजर भी आस्तीनों में न जाने कौन सी कश्ती में जा के बैठ गया दुआ-ए-माँ मुतलाशी रही सफ़ीनों में इन ऊँचे लोगों में 'अनवर' कभी नहीं मिलता जो इल्म-ओ-फ़न है छुपा बोरिया-नशीनों में