मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ वो टूट फूट के बिखरा मैं पाश पाश हुआ तमाम उम्र ही अपने ख़िलाफ़ साज़िश की वो एहतियात की ख़ुद पर न राज़ फ़ाश हुआ सितम तो ये है वो फ़रहाद-ए-वक़्त है जिस ने न जू-ए-शीर निकाली न बुत-तराश हुआ यही तो दुख है बुराई भी क़ाएदे से न की न मैं शरीफ़ रहा और न बद-मआ'श हुआ हो एक बार का रोना तो रोऊँ भी दिल को ये आइना तो कई बार पाश पाश हुआ बला का हब्स था 'साजिद' हवा की बस्ती में चली जो साँस की आरी मैं क़ाश क़ाश हुआ