सब लुत्फ़ है ख़ाक-ए-ज़िंदगी का By Ghazal << मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दि... पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब ... >> सब लुत्फ़ है ख़ाक-ए-ज़िंदगी का हो ख़ाना ख़राब आशिक़ी का हर वक़्त की ज़िद बुरी है देखो कहना भी किया करो किसी का यूँ दाद वो देते हैं वफ़ा की ये काम नहीं है आदमी का दिलकश न हों क्यूँ 'नसीम' के शेर शागिर्द है 'दाग़'-देहलवी का Share on: