मिले हैं हर्फ़ बस इतने मुझे बयाँ के लिए गली की रौशनी जैसे किसी मकाँ के लिए चलो कि चल के किसी दश्त को करें आबाद फ़ज़ा-ए-शहर तो क़ातिल है जिस्म-ओ-जाँ के लिए हमारे दर की सभी दस्तकें रहीं महफ़ूज़ तमाम-उम्र किसी दस्त-ए-मेहरबाँ के लिए सभी को मेरी तरह इश्क़ का नहीं इदराक समुंदरों का सफ़र है जहाज़-राँ के लिए हवा-ए-बहर हद-ए-बहर से निकल न सकी कभी उठा जो कोई अब्र शहर-ए-जाँ के लिए अजीब बात मकीनों को कुछ ख़बर न हुई गली में बोलियाँ लगती रहीं मकाँ के लिए उसी जहाँ की मोहब्बत में मर गए 'ख़ावर' किया न काम कोई तुम ने इस जहाँ के लिए