मिली भी क्या दर-ए-दौलत से कार-ए-इश्क़ की दाद यही कि तेशा-ए-फ़रहाद बर-सर-ए-फ़रहाद रुख़-ए-नुमू को शिकायत फ़क़त ख़िज़ाँ से नहीं बहार में भी हुई किश्त-ए-जिस्म-ओ-जाँ बर्बाद दवाम माँग रहा हूँ गुज़रते लम्हों से है ज़िंदगी से मोहब्बत ही ज़िंदगी का तज़ाद ज़माने भर के ग़मों से अलग थलग रह कर सुकूँ बहुत है मगर है दिल-ए-सुकूँ बर्बाद शुऊर-ए-ग़म ख़बर-ए-ज़ीस्त ए'तिबार-ए-वजूद सज़ा है या कि जज़ा है ये आलम-ए-ईजाद मताअ'-ए-शेर-ओ-सुख़न भी जभी सलामत है कि मेरे लोग मिरी बस्तियाँ रहें आबाद मआल-ए-कोहकन-ओ-क़ैस देख कर भी 'सहर' चले हैं कू-ए-तमन्ना को हर चे बाद ऐ बाद