कोई सुने न सुने अर्ज़-ए-हाल करता जा न रुक जवाब की ख़ातिर सवाल करता जा समुंदरों को हवा में उछाल दे इक बार तू बा-हुनर है तो ये भी कमाल करता जा बदल दे हिज्र की साअत को वस्ल लम्हों में बना के काम को आसाँ मुहाल करता जा तू बे-मिसाल अगर है तो मुझ में ज़ाहिर हो मुझे भी अपनी तरह बे-मिसाल करता जा क़रीब आ कि उजालों के हार पहना दूँ मुझे असीर-ए-शब-ए-ला-ज़वाल करता जा शिकस्त ओ फ़तह नसीबों से है वले ऐ दिल मिले हैं ज़ख़्म तो ख़ुद इंदिमाल करता जा यहीं कहीं तिरा माज़ी भी साँस लेता है गुज़रने वाले बस इतना ख़याल करता जा तिरा हुनर तिरी दानाई बद-दुआ है 'इमाम' ज़वाल तेरा मुक़द्दर कमाल करता जा सुख़न-नवाज़ मिरे नुक्ता-चीं मिरे नाक़िद मुझे शिकार-ए-इताब-ओ-जलाल करता जा बहुत से तीर हैं तेरी कमाँ में क़ैद अब भी मिरे लहू से क़बा अपनी लाल करता जा मिरे ज़वाल पे कर सब्त आख़िरी तहरीर ये कार-ए-नेक भी ऐ ला-ज़वाल करता जा