मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला उड़ा संग से तो शरार का न पता चला जो खिंचे खिंचे मुझे लग रहे थे यहाँ वहाँ किसी एक ऐसे हिसार का न पता चला रहा जाते जाते न देख सकने का ग़म हमें वो ग़ुबार उठा कि सवार का न पता चला रही हिज्र में जो इक एक पल की ख़बर मुझे तो विसाल में शब-ए-तार का न पता चला कई मौसमों से तलाश में है मिरी नज़र किसी गुलसिताँ से बहार का न पता चला