मिलना न मिलना एक बहाना है और बस तुम सच हो बाक़ी जो है फ़साना है और बस लोगों को रास्ते की ज़रूरत है और मुझे इक संग-ए-रहगुज़र को हटाना है और बस मसरूफ़ियत ज़ियादा नहीं है मिरी यहाँ मिट्टी से इक चराग़ बनाना है और बस सोए हुए तो जाग ही जाएँगे एक दिन जो जागते हैं उन को जगाना है और बस तुम वो नहीं हो जिन से वफ़ा की उम्मीद है तुम से मिरी मुराद ज़माना है और बस फूलों को ढूँडता हुआ फिरता हूँ बाग़ में बाद-ए-सबा को काम दिलाना है और बस आब ओ हवा तो यूँ भी मिरा मसअला नहीं मुझ को तो इक दरख़्त लगाना है और बस नींदों का रत-जगों से उलझना यूँही नहीं इक ख़्वाब-ए-राएगाँ को बचाना है और बस इक वादा जो किया ही नहीं है अभी 'सलीम' मुझ को वही तो वादा निभाना है और बस