मीनारों से ऊपर निकला दीवारों से पार हुआ हद्द-ए-फ़लक छूने की धुन में इक ज़र्रा कोहसार हुआ चश्म-ए-बसीरत राह की मिश्अल अज़्म-ए-जवाँ पतवार हुआ साहिल साहिल जश्न-ए-तरब है एक मुसाफ़िर पार हुआ दिल के जज़्बे सामने आए ख़ुशबू ख़्वाब धुआँ बन कर जितनी दिलकश सोच थी उस की वैसा ही इज़हार हुआ उभरे एहसासात के सूरज यादों के महताब खुले ग़ज़लों का दीवान सुहाने मौसम का अख़बार हुआ जंगल पर्बत नदियाँ झरने याद रहेंगे बरसों तक इस बस्ती में हुस्न है जितना पाबंद-ए-अशआर हुआ