मिरा दिल अजब शादमानी में गुम है कि वो आज मेरी कहानी में गुम है समझता है दिल तेरे तर्ज़-ए-सुख़न को मगर तेरी जादू-बयानी में गुम है मैं हूँ फ़ितरतन मौज से लड़ने वाला वो मल्लाह क्या जो रवानी में गुम है उसे क्या पता क्या है सहरा-नवर्दी हवाओं की जो बे-ज़बानी में गुम है बहुत टीस उठती है देखे से उस को वो क्या है जो तेरी निशानी में गुम है उसी का तो हक़ मोतियों पर है 'अंजुम' समुंदर की जो बे-करानी में गुम है