मिरा दिल इक सुलगता सा कुआँ क्यूँ यहाँ ठहरा ही करता है धुआँ क्यूँ वो ठंडी छाँव पेड़ों की वो झोंके वहाँ क्यूँ आप हैं और हम यहाँ क्यूँ कोई मालिक कोई माली नहीं क्या चमन में इस तरह पगडंडियाँ क्यूँ इक आँसू ही तो टपका था ज़मीं पर वहीं निकला तुम्हारा आस्ताँ क्यूँ तवाना आरज़ू हम भी तवाना वो दुबली काँपती परछाइयाँ क्यूँ जो लम्हे उँगलियों से छिन चुके हैं अभी तक कह रहे हैं दास्ताँ क्यूँ ख़िज़ाँ पल-भर में आया चाहती है दिए जाती है ख़ुशबू लोरियाँ क्यूँ