मिरा दिल इस लिए धड़का नहीं है पलट कर उस ने जो देखा नहीं है इलाही मैं कहाँ पर आ गई हूँ उजाला भी जहाँ उजला नहीं है ये आँसू भी मुसाफ़िर हैं जभी तो उन्हें मैं ने कभी रोका नहीं है वही इक ख़्वाब होता है असासा हमारे पास जो होता नहीं है तो क्या अब ज़ुल्म हद से बढ़ गया है जो कोई अब तलक रोया नहीं है पलटना भी नहीं 'शाहीन' मैं ने और आगे भी कोई रस्ता नहीं है