मिरा इख़्लास भी इक वज्ह-ए-दिल-आज़ारी है बंदा-परवर मुझे एहसास-ए-गुनहगारी है आप अज़िय्यत का बनाते हैं जो ख़ूगर मुझ को इस से बेहतर भला क्या सूरत-ए-ग़म-ख़्वारी है महज़ तस्कीन-बरआरी के बहाने हैं सब मैं तो कहता हूँ मोहब्बत भी रिया-कारी है मश्क़ करता है नसीहत की जिन अय्याम में तू वाइज़-ए-शहर वही मौसम-ए-मय-ख़्वारी है कैसे आएगा न सर-दर्द को आराम 'अदम' मेरे अहबाब को तक़रीर की बीमारी है