मिरे बनने से क्या क्या बन रहा था मैं बनने को अकेला बन रहा था और अब जब तन चुका तो शर्म आई कई दिन से ये पर्दा बन रहा था ज़ियादा हो रही थीं दो सराएँ मैं फिर महफ़िल का हिस्सा बन रहा था क़यामत और क़यामत पर क़यामत मैं ख़ुश था मेरा हल्क़ा बन रहा था फ़लक मिट सा गया हद्द-ए-नज़र तक सितारा ही इक ऐसा बन रहा था नशेब-ए-शहर था यूँ रोज़-अफ़्ज़ूँ मियान-ए-शहर ज़ीना बन रहा था ख़राबी में ये ख़म आया अचानक ख़राबा अच्छा-ख़ासा बन रहा था मैं आधा जिस्म जा बैठा वहीं पर जहाँ बाक़ी का आधा बन रहा था और अब जब कुछ न बन पाया तो बोले यही तो था जो कब का बन रहा था अदाकारी नुमू-दारी थी यकसर मैं ना-मौजूद कितना बन रहा था ठहर जाना ज़रूरत से था या'नी गुज़र जाने का लम्हा बन रहा था मुझे आसान था होना न होना ज़माना मिट रहा था बन रहा था