मिरे ग़याब में जिस ने हँसी उड़ाई मिरी किसी ने क्या उसे हालत नहीं बताई मिरी कशिश का रद्द-ए-कशिश है अमल का रद्द-ए-अमल बदन से लम्हा-ब-लम्हा गुरेज़-पाई मिरी मैं एक बार समुंदर को जाता देखा गया फिर उस के बा'द कहीं से ख़बर न आई मिरी अलग न कर सका अब तक मैं उस के अज्ज़ा को बईद क्या है कि हैरत हो कीमियाई मिरी न कुछ उफ़ुक़ का पता है न कुछ उमूद का है न जाने कैसी फ़ज़ा में है पर-कुशाई मिरी मैं आप तो कहीं अब तक पहुँच नहीं पाया मगर जगह जगह पहुँची है ना-रसाई मिरी मुझे तो अर्सा-ए-बर्ज़ख़ था जाँ-कनी जैसा क़यामत आई तो साँसों में साँस आई मिरी वज़ाहत इस की कोई और कर सके तो करे मिरी समझ से तो बाहर है बे-नवाई मिरी हवा के सफ़्हे पे फ़ितरत-निगारी करता रहूँ शजर क़लम हों समुंदर हों रौशनाई मिरी निकल पड़ूँगा वहाँ से फिर अगली दुनिया को कभी जो एक जहाँ तक हुई रसाई मिरी किरन से साँस का मजमूआ' नज़्म करता हूँ हवा को इल्म है तालीफ़ है ज़ियाई मिरी ज़मीं को जाती है 'शाहिद' न आसमानों को जिस एक राहगुज़र पर है नक़्श-पाई मिरी