मिरे हवास पे हावी रही कोई कोई बात कि ज़िंदगी से सिवा ख़ास थी कोई कोई बात ये और बात कि महसूस तक न होने दूँ जकड़ सी लेती है दिल को तिरी कोई कोई बात कोई भी तुझ सा मुझे हू-ब-हू कहीं न मला किसी किसी में अगरचे मिली कोई कोई बात ख़ुशी हुइ कि मुलाक़ात राएगाँ न गई उसे भी मेरी तरह याद थी कोई कोई बात बदन में ज़हर कै मानिंद फैल जाती है दिलों में ख़ौफ़ से सहमी हुइ कोई कोई बात कभी समझ नहीं पाए कि उस में क्या है मगर चली तो ऐसे कि बस चल पड़ी कोई कोई बात वज़ाहतों में उलझ कर यही खिला 'जव्वाद' ज़रूरी है कि रहे अन-कही कोई कोई बात