नहीं ये जीत नहीं है तू इस को मात समझ कि तेरे साथ यहाँ हो गया है हाथ समझ मैं अपने प्यादे से तेरा वज़ीर मारुँगा ब-ग़ौर देख मिरी चाल वारदात समझ किसी किसी पे ही खुलते हैं पेच-ओ-ख़म मेरे मैं इतना सहल नहीं मेरी मुश्किलात समझ मोहब्बत इतनी रिआ'यत नहीं दिया करती अगर वो हँस के भी देखे तो इल्तिफ़ात समझ मिरी कहानी तिरे चेहरे पर लिखी हुई है मैं आइना हूँ मुझे देख और बात समझ दफ़ीना जान इन आँखों को हिज्र में उस के जो इन में अश्क हैं पिन्हाँ नवादिरात समझ गुज़र चुका है अगर तू सिन-ए-बुलूग़त से तू अपने जिस्म को अब वाजिबुज़्ज़कात समझ नज़र को एक ही नुक़्ते पे मुर्तकिज़ कर ले दिल-ओ-निगाह की उलझन को एक साथ समझ धड़क रहा है ये किस शख़्स की मोहब्बत में समझ में आएँ तो दिल के मुआ'मलात समझ ये चलते-फिरते हुए बुत हैं आदमी तो नहीं ज़मीं पे चार-सू बरपा है सोमनात समझ इक एक लफ़्ज़ अलामत है हुस्न-ए-फ़ितरत की ये शाइ'री है सो इस की जमालियात समझ रुके हुए भी सफ़र कर रही है ख़ाक मिरी गुज़र रही है गुज़ारे बिना हयात समझ खुली है जब से तिरी कीना-पर्वरी मुझ पर तो आ गई है मुझे एक एक बात समझ तुझे ये इश्क़ की जानिब धकेल सकता है समझ रहा है तो दिल को भी दोस्त घात समझ जो मुझ पे बीता है मैं ने वही लिखा है 'ज़ेब' तू मेरे शे'रों को बस मेरे तजरबात समझ