मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को ज़ख़्म-ए-दामन-दार होना था ज़रा वाज़ेह तुम्हारे लुत्फ़ का इज़हार होना था दिल-ए-पुर-दाग़ की तारीकियों पर सख़्त हैरत है ये वो मतला है जिस को मतला-ए-अनवार होना था तुम्हें लेना था पहले जाएज़ा अपनी निगाहों का फिर उस के बा'द मूसा तालिब-ए-दीदार होना था परेशाँ हैं मिसाल-ए-गर्द-गुमनामी के सहरा में बहुत ऐसे कि जिन को क़ाफ़िला-सालार होना था उधर वो आए आँखों में इधर ख़्वाब-ए-अजल आया कहाँ सोई हुई तक़दीर को बेदार होना था कोई देखे तो 'फ़ाज़िल' क़ाबिलिय्यत बाग़बानों की वहाँ काँटे ही काँटे हैं जहाँ गुलज़ार होना था