मिरे पस रू को अंदाज़ा नहीं था मैं रस्ता था मगर सीधा नहीं था मुझे सूरज पे ये भी बरतरी थी मैं रौशन था मगर जलता नहीं था सफ़र की आरज़ू कुछ दीदनी थी मैं क़तरा था मगर रुकता नहीं था जड़ें थीं साया था फल फूल भी थे मैं जितना था फ़क़त उतना नहीं था वो लगता था मगर ऐसा नहीं था समुंदर ही सही गहरा नहीं था भड़क उठा जो तेरे आँसुओं से वो मेरा ज़ख़्म था शो'ला नहीं था वो अनहोनी थी जो हो कर रही थी जो होना था वही होता नहीं था कहाँ की गर्मी-ए-बाज़ार दुनिया मैं सिक्का था मगर चलता नहीं था