मिरे रात दिन कभी यूँ भी थे कई ख़्वाब मेरे दरूँ भी थे ये जो रोज़-ओ-शब हैं क़रार में यही पहले वक़्फ़-ए-जुनूँ भी थे मिरा दिल भी था कभी आइना किसी जाम-ए-जम से भी मावरा ये जो गर्द ग़म से है बुझ गया इसी आइने में फ़ुसूँ भी थे ये मक़ाम यूँ तो फ़ुग़ाँ का था प हँसे कि तौर जहाँ का था था बहुत कड़ा ये मक़ाम पर कई एक इस से फ़ुज़ूँ भी थे अभी अक़्ल आ भी गई तो क्या अभी हँस दिए भी तो क्या हुआ हमी दश्त-ए-इश्क़-ए-नवर्द थे हमी लोग अहल-ए-जुनूँ भी थे ये जो सैल-ए-ग़म सर-ए-चश्म-ए-नम है रवाँ-दवाँ कई रोज़ से उसे क्या ख़बर इसी दश्त में कई ख़्वाब महव-ए-सुकूँ भी थे