मिरे सोए दिल को जगाने लगी है ये सहरा में बादल सजाने लगी है बिछा दो सभी फूल राहों पे उस के वो सावन की रुत मिलने आने लगी है ज़मीं से फ़लक तक छलकता समाँ है हवा में समुंदर उठाने लगी है कभी गिरते पत्ते कभी उड़ते पत्ते ये आँगन में हलचल मचाने लगी है बड़ी ख़ूबसूरत है बारिश मगर ये ग़रीबों की छत क्यूँ गिराने लगी है टपकता है पानी शजर से हजर से ये पत्थर भी देखो रुलाने लगी है हुई घर से रुख़्सत है बेटी की डोली माँ बारिश में आँसू छुपाने लगी है 'महक' दिल था आवारा पंछी हवा का उसे घर का रस्ता दिखाने लगी है